Page

Monday, September 24, 2018

दुर्गा नवरात्री पूजा, व्रत, आरती एवं आराधना - वर्ष 2018


प्रिय मित्रो इस बार भी हम सभी माँ दुर्गा के शुभ पर्व "नव रात्रि" के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं आइये जानते हैं क़ि इस वर्ष 2018 में किस दिन से दुर्गा नवरात्रि प्रारम्भ होने वाली है और इस वर्ष हम माँ दुर्गा क़ि पूजा तथा आराधना कैसे करें, उनका आशीर्वाद किए प्राप्त करें तथा इस पावन पर्व को पूरे हर्षो उल्लास के साथ कैसे मनायेँ


www.vratkathaa.blogspot.com

Thursday, September 13, 2018

गणेश चतुर्थी || विस्तृत जानकारी




संक्षिप्त विवरण

गौरीपुत्रगजानंदशिवसुतायविघ्नहर्ता श्री गणेश जी की स्थापना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को की जाती है। यह महोत्सव हर साल अगस्त या सितम्बर में मनाया जाता है। उत्सव आमतौर पर अनंत चतुर्दशी नामक अंतिम दिन होने वाले सबसे बड़े प्रदर्शन के साथ 11 दिनों के लिए मनाया जाता है।


वर्ष (Years)
गणेश स्थापना
(Ganesh Chaturthi)
गणेश विसर्जन
(Anant Chaturdashi)
2018
13-Sep-2018
23-Sep-2018
2019
02-Sep-2019
12-Sep-2019
2020
22-Aug-2020
01-Sep-2020


गणेश चतुर्थी विस्तृत जानकारी

गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाते हैं। इस दिनभगवान की सुंदर मूर्तियों को घरों और सार्वजनिक दोनों जगहों में स्थापित किया जाता है। मूर्ति में शक्ति स्थापित करने के लिए प्राण प्रतिष्ठा का आव्हान किया जाता हैजिसे सोलह भागों में किया जाता है और ये अनुष्ठान शोडशोपचार पूजा के नाम से जाना जाता है। 

अनुष्ठान के दौरानमिठाईनारियल और फूल सहित विभिन्न प्रसाद मूर्ति को अर्पित किये जाते हैं। यह अनुष्ठान दोपहर के आसपास एक शुभ समय पर किया जाना चाहिएजिसे मध्याहना के नाम से जाना जाता हैजिस समय भगवन गणेश का जन्म हुआ ऐसा माना जाता है। 

परंपरा के अनुसार ऐसा माना जाता हैगणेश चतुर्थी पर कुछ समय के दौरान चंद्रमा को न देखना अच्छा माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति चंद्रमा को देखता हैतो उसे चोरी के आरोपों के साथ शाप दिया जाएगा और समाज द्वारा अपमानित किया जाएगा। जब तक कि वे एक निश्चित मंत्र का जप नहीं करते। 

स्वभवतः हीभगवान श्री कृष्ण पर एक मूल्यवान गहने के चोरी करने का झूठा आरोप लगाया गया था। ऋषि नारद ने कहा कि श्री कृष्ण ने भद्रपद शुक्ल चतुर्थी (जिस अवसर पर गणेश चतुर्थी मनाई जाती हैं) पर चंद्रमा को देखा था और इसके कारण उन्हें शाप दिया गया था। इसीलिए ऐसा माना जाता है की उस दिन चाँद को देखने वाले को भी ऐसा ही शाप लगेगा इस कारण ही उस दिन चाँद को देखने की मनाही होती है।

शाम को आरती के साथ हर दिन भगवान गणेश की मूर्तियों की पूजा की जाती है और ग्यारह दिन पुरे होने के बाद आमतौर पर गणेश की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। हालांकिबहुत से लोग जो अपने घरों में मूर्ति रखते हैंवे लोग 1.5 दिन , 2.5 दिन , 3 दिन , 5 दिन , 7 दिन , 9 दिन तथा 11 दिनों के लिए भी गणपति की स्थापना करते हैं।


अनंत चतुर्दसी का महत्व क्या है?

आप सोच रहे होंगे कि श्री गणेश की मूर्तियों का विसर्जन इस दिन क्यों समाप्त होता है। यह विशेष क्यों हैसंस्कृत मेंअनंत, अनंत ऊर्जाया अमरत्व को संदर्भित करता है। यह दिन वास्तव में भगवान अनंत की पूजाभगवान विष्णु के अवतार (जीवन के संरक्षक और संयोजकजिसे सर्वोच्च भी कहा जाता है) की पूजा के लिए समर्पित है। चतुर्दशी का मतलब है "चौदहवें"। इस मामले मेंयह अवसर हिंदू कैलेंडर पर भद्रपद के महीने के दौरान चंद्रमा कला के 14 वें दिन पड़ता है।


Monday, March 12, 2018

रविवार व्रत विधि एवं कथा

https://vratkathaa.blogspot.com/
किसी ग्रह की अनुकूलता प्राप्त करने हेतु उससे संबंधित वस्तुओं का दान, जप तथा व्रत करने का विधान है। किसी ग्रह की शांति कराने या उसकी शुभता प्राप्त करने के लिए उससे संबंधित वार को व्रत किया जाता है। यदि किसी ग्रह की दशा, महादशा, अंतर्दशा, जन्मांक और गोचराष्टक वर्ग में से कोई अनिष्टकारी- हो तो उस ग्रह की शांति के लिए वार के अनुसार व्रत करने का विधान है। सप्ताह के प्रत्येक वार का काल सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक रहता है।

https://vratkathaa.blogspot.com/
रविवार व्रत सूर्य देव की कृपा प्राप्ति हेतु किया जाता है। सूर्य प्रकाश, आरोग्य, प्रतिष्ठाद- ि देते हैं तथा अरिष्टों का निवारण भी करते हैं। नवग्रह शांति विधान में भी केवल सूर्योपासन- ा से सभी ग्रह की शांति हो जाती है, क्योंकि ये नवग्रहों के राजा हैं। इस हेतु माह वैशाख, मार्गशीर्ष- और माघ श्रेष्ठ हैं। उक्त में से किसी भी माह के प्रथम रविवार (शुक्ल पक्ष) से इस व्रत को संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए। यह व्रत एक वर्ष अथवा १२ या ३० रविवार तक करे ।

रविवार व्रत विधान – 

WordPress.com

प्रातः काल स्नानोपरां- त रोली या लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत, दूर्वा मिश्रित जल आदि से सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए। भोजन के पूर्व स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र धारण कर निम्न मंत्र बोलते हुए पुनः अघ्र्य दें- नमः सहस्रांशु सर्वव्याधि- विनाशन/गृह- णाघ्र्यमय- दत्तं संज्ञा सहितो रवि।।

अघ्र्- य देने के पूर्व ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ मंत्र का कम से कम पांच माला (या यथा शक्ति) जप करना चाहिए। लाल चंदन, कुमकुम या रोली का तिलक लगाकर रविवार व्रत कथा पढ़ें।

इस व्रत में इलायची मिश्रित गुड़ का हलवा, गेहूं की रोटियां या गुड़ से निर्मित दलिया सूर्यास्त के पूर्व भोजन के रूप में ग्रहण करना चाहिए। यदि निराहार रहते हुए सूर्य छिप जाये तो दुसरे दिन सूर्य उदय हो जाने पर अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करें । भोजन में सर्वप्रथम सात कौर गुड़ का हलवा या दलिया और फिर अन्य पदार्थ ग्रहण करना चाहिए। भोजन के पूर्व हलवा या दलिया का कुछ भाग देवस्थान या देव-दर्शन को आए बालक-बालिक- ओं को देना चाहिए। नमक – तेलयुक्त भोजन का प्रयोग न करे।

अंतिम रविवार को आम या अर्क की समिधा से हवन कर ब्राह्मण व ब्राह्मणी को भोजन कराएं और वस्त्र, दक्षिणा आदि देकर आशीर्वाद लें। ब्रह्मचर्य- व्रत का पालन करते हुए पूर्ण निष्ठा के साथ सूर्य का व्रत करने से सभी मनोकामनाओं- की पूर्ति होती है। इससे न केवल शत्रु पर विजय की प्राप्त होती है, बल्कि संतान प्राप्ति के भी योग बनते हैं। साथ ही नेत्र व्याधि, चर्म रोग, कुष्ठ रोगादि दूर होते हैं। यह व्रत आरोग्य, सौभाग्य और दीर्घायु भी देता है।

रविवार (इतवार) व्रत कथा

WordPress.com

प्राचीन- काल में कंचनपुर में एक बुढ़िया रहती थी। वह नियमित रूप से रवि वार का व्रत कर रही थी। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर के आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती थी। उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए, रविवार व्रत कथा सुन कर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती थी। सूर्य भगवान की अनुकम्पा से बुढ़िया को किसी प्रकार की कोई चिन्ता व कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था। उस बुढ़िया को सुखी-समृद्- होते देखकर उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी थी। बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यास- सो गई। रात्रि में सूर्य भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और उससे व्रत न करने तथा उन्हें भोग न लगाने का कारण पूछा। बुढ़िया ने बहुत ही करुण स्वर में पड़ोसन के द्वारा घर के अन्दर गाय बांधने और गोबर न मिल पाने की बात कही। सूर्य भगवान ने अपनी अनन्य भक्त बुढ़िया की परेशानी का कारण जानकर उसके सब दुःख दूर करते हुए कहा, “हे माता! तुम प्रत्येक रविवार को मेरी पूजा और व्रत करती हो। मैं तुमसे अति प्रसन्न हूं और तुम्हें ऐसी गाय प्रदान करता हूं जो तुम्हारे घर-आंगन को धन-धान्य से भर देगी। तुम्हारी सभी मनोकामनाएं- पूरी होंगी। रविवार का व्रत करनेवालों की मैं सभी इच्छाएं पूरी करता हूं। मेरा व्रत करने व कथा सुनने से बांझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है। निर्धनों के घर में धन की वर्षा होती है। शारीरिक कष्ट नष्ट होते हैं। मेरा व्रत करते हुए प्राणी मोक्ष को प्राप्त करता है।” स्वप्न में उस बुढ़िया को ऐसा वरदान देकर सूर्य भगवान अन्तर्धान हो गए।

WordPress.com

प्रातःक- ाल सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुन्दर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन ने उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुन्दर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक जलने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट गईं। पड़ोसन ने उस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरन्त उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी और बुढ़िया के उठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती थी। बहुत दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। लेकिन सूर्य भगवान को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया। सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी। सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिन में बहुत धनी हो गई। उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई और उसने अपने पति को समझा-बुझाक- उस नगर के राजा के पास भेज दिया। राजा को जब बुढ़िया के पास सोने के गोबर देने वाली गाय के बारे में पता चला तो उसने अपने सैनिक भेजकर बुढ़िया की गाय लाने का आदेश दिया। सैनिक उस बुढ़िया के घर पहुचे। उस समय बुढ़िया सूर्य भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी। राजा के सैनिकों ने गाय और बछड़े को खोला और अपने साथ महल की ओर ले चले। बुढ़िया ने सैनिकों से गाय और उसके बछड़े को न ले जाने की प्रार्थना की, बहुत रोई-चिल्ला- , लेकिन राजा के सैनिक नहीं माने। गाय व बछड़े के चले जाने से बुढ़िया को बहुत दुःख हुआ। उस दिन उसने कुछ नहीं खाया और सारी रात सूर्य भगवान से गाय व बछड़े को लौटाने के लिए प्रार्थना करती रही।

WordPress.com

सुन्दर- गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यास- बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत करुणा आई। उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा, राजन! बुढ़िया की गाय व बछड़ा तुरन्त लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों- का पहाड़ टूट पड़ेगा। तुम्हारे राज्य में भूकम्प आएगा। तुम्हारा महल नष्ट हो जाएगा। सूर्य भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रातः उठते ही गाय और बछड़ा बुढ़िया को लौटा दिया। राजा ने बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा भी मांगी। राजा ने पड़ोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दण्ड भी दिया। फिर राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री-पुर- ष रविवार का व्रत किया करें। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए। चारों ओर खुशहाली छा गई। सभी लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए। निस्सन्तान- स्त्रियों को पुत्रों की प्राप्ति होने लगी। राज्य में सभी स्त्री-पुर- ष सुखी जीवन-यापन करने लगे।

रविवा- की आरती
कहुँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे ।। टेक
सात समुद्र जाके चरण बसे, कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम ।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम ।
भार उठारह रोमावलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम ।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवेघ धरे हो राम ।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झनकार करे हो राम ।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रहम वेद पढ़े हो राम ।
शिव सनकादिक आदि ब्रहमादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम ।
हिम मंदार जाको पवन झकेरिं, कहा भयो शिर चँवर ढुरे हो राम ।
लख चौरासी बन्दे छुड़ाये, केवल हरियश नामदेव गाये ।। हो रामा ।

WordPress.com

शनिवार व्रत विधि एवं कथा

WordPress.com

शनिवार का व्रत करने से शनि और राहु की शांति होती है. शनि की शांति हेतु कम से कम 19 व्रत एवं राहु की शांति के लिए 18 व्रत किए जाते हैं. यह व्रत मनस्ताप, रोग, शोक, भय, बाधा आदि से मुक्ति एवं शनि जन्य पीड़ा के निवारण के लिए विशेष रूप से फलदायक होता है. शनिवार के दिन प्रातः स्नानादि करने के बाद काला तिल और लौंग मिश्रित जल पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पीपल वृक्ष पर चढाएं. तत्पश्चात शिवोपासना या हनुमत आराधना और साथ ही शनि की लौह प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए. फिर शनिवार व्रत कथा का पाठ करना चाहिए. उड़द के बने पदार्थ बूढ़े ब्राह्मण को देना चाहिए और स्वयं सूर्यास्त के पश्चात भोजन ग्रहण करना चाहिए. भोजन के पूर्व शनि की शांति हेतु ‘शं शनैश्चराय नमः’ मंत्र का और राहु की शांति ‘हेतु ‘रां राहवे नमः’ मंत्र का तीन-तीन माला जप करना चाहिए. शनि के व्रत की पूर्णाहुति हेतु शमीकाष्ठ से हवन करें. राहु के व्रत की पूर्णाहुति हेतु हवन में दूर्वा का उपयोग करना चाहिए.
शनिवार व्रत विधि: 

शनि देव की पूजा शनिवार के दिन होती है. इनकी पूजा काला तिल, काला वस्त्र, तेल, उड़द के द्वारा की जाती है. यह वस्तुएं शनि देव को बहुत प्रिय है. शनि की दशा को दूर करने के लिए यह व्रत किया जाता है. इनके प्रकोप में से बचने के लिए शनि सत्रोत का पाठ विशेष लाभदायक सिद्ध होता है.

शनिवार व्रत कथा: 

एक बार स्वर्गलोक में इस प्रश्न पर नौ ग्रहों में वाद-विवाद हो गया कि 'सबसे बड़ा कौन?' है. विवाद इतना बढ़ गया कि परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई. निर्णय के लिए सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुँचे और बोले- 'हे देवराज! आप यह निर्णय कीजिए कि हममें से सबसे बड़ा कौन है?' देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए. इंद्र बोले- 'मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूँ. हम सभी पृथ्वीलोक में उज्जयिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं. इसका प्रश्न का समाधान वही बताएंगें. देवराज इंद्र सहित सभी देवता उज्जयिनी नगरी पहुँचे. राजा विक्रमादित्य ने महल में सभी देवताओं का स्वागत किया और आने का कारण पूंछा. तब देवताओं ने राजा विक्रमादित्य से अपना प्रश्न पूछा. प्रसुन सुनकर राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे क्योंकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान थे. किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुँच सकती थी. अचानक राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- स्वर्ण, रजत (चाँदी), कांसा, ताम्र (तांबा), सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक व लोहे के नौ आसन बनवाए. धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवाकर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा. देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा- 'आपका निर्णय तो स्वयं हो गया. जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वही सबसे बड़ा है.' राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा- 'राजा विक्रमादित्य! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है. तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो. मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूँगा.' शनि ने कहा- 'सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं, लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष (साढ़े साती) तक रहता हूँ. बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है. राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा. राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा.' इसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ चले गए, परंतु शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहाँ से विदा हुए. राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे. उनके राज्य में सभी स्त्री-पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे. कुछ दिन ऐसे ही बीत गए. उधर शनि देवता अपने अपमान को भूले नहीं थे. राजा विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्जयिनी नगरी पहुँचे. राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा. घोड़े बहुत कीमती थे. अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा विक्रमादित्य ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया. घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुए तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा. तेजी से दौड़ता घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहाँ गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया. राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगे लेकिन उन्हें लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला. राजा विक्रमादित्य भूख और प्यास से तड़पने लगे. बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला. राजा ने उससे पानी माँगा. पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अँगूठी दे दी. फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से निकलकर पास

WordPress.com

के नगर में पहुँचा.  राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया. उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्जयिनी नगरी से आया हूँ. राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठजी की बहुत बिक्री हुई. सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और खुश होकर उसे भोजन कराने के लिए अपने घर ले गया. सेठ के घर में सोने का एक हार खूँटी पर लटका हुआ था. राजा को उस कमरे में छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया. तभी देखते ही देखते उस खूंटी ने सोने का हार निगल लिया. एक आश्चर्यजनक घटना घटी. यह देखकर राजा बहुत ही आश्चर्य चकित हुआ. सेठ ने कमरे में लौटकर हार को गायब देखा तो चोरी का संदेह राजा पर ही किया क्योंकि उस कमरे में राजा ही अकेला बैठा था. सेठ ने अपने नौकरों से कहा कि इस परदेसी को रस्सियों से बाँधकर नगर के राजा के पास ले चलो. राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूँटी ने हार को निगल लिया था. इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पाँव काटने का आदेश दे दिया. राजा विक्रमादित्य के हाथ-पाँव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया. कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया. राजा आवाज देकर बैलों को हाँकता रहता. इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा. शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ऋतु प्रारंभ हुई. राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी. उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गाने वाले को बुला लाने को कहा. दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया. राजकुमारी उसके मेघ मल्हार से बहुत मोहित हुई. अतः उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया.

WordPress.com 

 राजकुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गए. रानी ने मोहिनी को समझाया- 'बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है. फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पाँव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है?' राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी. अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया. आखिर राजा-रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पड़ा. विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे. उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा- 'राजा तुमने मेरा प्रकोप देख लिया. मैंने तुम्हें अपने अपमान का दंड दिया है.' राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की- 'हे शनिदेव! आपने जितना दुःख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना.' शनिदेव ने कुछ सोचकर कहा- 'राजा! मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूँ. जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत करके मेरी व्रतकथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी. प्रातःकाल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पाँव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई. उसने मन ही मन शनिदेव को प्रणाम किया. राजकुमारी भी राजा के हाथ-पाँव सही-सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई.

WordPress.com

तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी सुनाई. सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुँचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगा. राजा ने उसे क्षमा कर दिया क्योंकि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था. सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया. भोजन करते समय वहाँ एक आश्चर्यजनक घटना घटी. सबके देखते-देखते उस खूँटी ने हार उगल दिया. सेठजी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया. राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्जयिनी पहुँचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया. अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि शनिदेव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं. प्रत्येक स्त्री-पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रतकथा अवश्य सुनें. राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए. शनिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएँ शनिदेव की अनुकम्पा से पूरी होने लगीं. सभी लोग आनंदपूर्वक रहने लगे.

WordPress.com

आरती:
चार भुजा तहि छाजै, गदा हस्त प्यारी | जय ०
रवि नंदन गज वंदन,यम अग्रज देवा |
कष्ट न सो नर पाते, करते तब सेना | जय ०
तेज अपार तुम्हारा, स्वामी सहा नहीं जावे |
तुम से विमुख जगत में,सुख नहीं पावे | जय ०
नमो नमः रविनंदन सब ग्रह सिरताजा |
बंशीधर यश गावे रखियो प्रभु लाज | जय ०
WordPress.com

बुधवार व्रत विधि एवं कथा

WordPress.com

बुधवार के देवता भगवान शिव या बुध देव हैं. बुधवार का व्रत विशाखा नक्षत्र में बुधवार के दिन से आरंभ करना चाहिए. इसे 17 या 21 सप्ताह तक करना चाहिए. इस योग के न मिलने की स्थिति में इस व्रत को किसी भी माह में शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से प्रारंभ किया जा सकता है.

व्रत विधि 

व्रत प्रारम्भ करने के दिन व्रती को प्रातः उठकर संपूर्ण घर की सफाई करनी चाहिए. तत्पश्चात स्नानादि से निवृत्त होकर संपूर्ण घर को पवित्र करने के उद्देश्य से गंगा जल का घर भर में छिड़काव करना चाहिए. उसके बाद घर के ईशान कोण में भगवान शिव या बुध का चित्र या मूर्ति कांस्य के बर्तन में स्थापित करना चाहिए. उनपर बेलपत्र, अक्षत, धूप और घी का दीपक जलाकर विधिवत पूजा करनी चाहिए.


इसके बाद निम्नलिखित मंत्र से भगवान बुध की प्रार्थना करें:

‘बुध त्वं बुद्धिजनको बोधदः सर्वदा नृणाम्‌. तत्वावबोधं कुरुषे सोमपुत्र नमो नमः’॥ 

बुधवार की व्रतकथा सुनकर आरती करें. इसके पश्चात गुड़, भात और दही का प्रसाद बाँटकर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें.

WordPress.com

व्रत कथा 

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार समतापुर नगर में मधुसूदन नामक एक व्यक्ति रहता था. वह बहुत धनवान था. मधुसूदन का विवाह बलरामपुर नगर की अति सुंदर, रूपवती और गुणवंती लड़की संगीता से हुआ था. एक बार मधुसूदन अपनी पत्नी संगीता को लेने बुधवार के दिन अपनी ससुराल बलरामपुर गया. मधुसूदन ने पत्नी के माता-पिता से संगीता को विदा कराने के लिए कहा. संगीता के माता-पिता मधुसूदन से बोले- 'बेटा, आज बुधवार है. बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते.' परन्तु मधुसूदन नहीं माना. उसने ऐसी शुभ-अशुभ की बातों को न मानने की बात कही. मधुसूदन के न मानने पर संगीता के माता-पिता ने उसे बिदा कर दिया. दोनों ने बैलगाड़ी से यात्रा प्रारंभ की. दो कोस की यात्रा के बाद उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया. वहां से दोनों ने पैदल ही यात्रा शुरू की. रास्ते में संगीता को प्यास लगी. मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने चला गया. थोड़ी देर बाद जब मधुसूदन कहीं से जल लेकर वापस आया तो वह देखता है कि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा है. यह देखते ही मधुसूदन बुरी तरह परेशान हो गया. संगीता भी मधुसूदन को देखकर हैरान रह गई. वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई. मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा- 'तुम कौन हो? और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो?' मधुसूदन की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा- 'अरे भाई, यह मेरी पत्नी संगीता है. मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूँ. लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?' मधुसूदन ने चीखते हुए कहा- 'तुम जरूर कोई चोर या ठग हो. यह मेरी पत्नी संगीता है. मैं इसे पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने गया था.' इस पर उस व्यक्ति ने कहा- 'अरे भाई! झूठ तो तुम बोल रहे हो. संगीता को प्यास लगने पर जल लेने तो मैं गया था. मैंने तो जल लाकर अपनी पत्नी को पिला भी दिया है. अब तुम चुपचाप यहां से चले जाओ. नहीं तो सिपाही को बुलाकर तुम्हें पकड़वा दूंगा.' दोनों एक-दूसरे से लड़ने लगे. उन्हें लड़ते देख बहुत से लोग वहां एकत्र हो गए. नगर के कुछ सिपाही भी वहां आ गए. सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए. सारी कहानी सुनकर राजा भी कोई निर्णय नहीं कर पाया. संगीता भी उन दोनों में से अपने वास्तविक पति को नहीं पहचान पा रही थी. राजा ने दोनों को कारागार में डाल देने के लिए कहा. राजा के फैसले पर असली मधुसूदन भयभीत हो उठा. तभी आकाशवाणी हुई- 'मधुसूदन! तूने संगीता के माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया. यह सब भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है.' मधुसूदन ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की कि 'हे भगवान बुधदेव मुझे क्षमा कर दीजिए. मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई. भविष्य में अब कभी बुधवार के दिन यात्रा नहीं करूंगा और सदैव बुधवार को आपका व्रत किया करूंगा.' मधुसूदन के प्रार्थना करने से भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया. तभी दूसरा व्यक्ति राजा के सामने से गायब हो गया. राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देख हैरान हो गए. भगवान बुधदेव की इस अनुकम्पा से राजा ने मधुसूदन और उसकी पत्नी को सम्मानपूर्वक विदा किया. कुछ दूर चलने पर रास्ते में उन्हें बैलगाड़ी मिल गई. बैलगाड़ी का टूटा हुआ पहिया भी जुड़ा हुआ था. दोनों उसमें बैठकर समतापुर की ओर चल दिए. मधुसूदन और उसकी पत्नी संगीता दोनों बुधवार को व्रत करते हुए अपने गांव में आनंदपूर्वक जीवन-यापन करने लगे. भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से उनके घर में धन-संपत्ति की वर्षा होने लगी. जल्दी ही उनके जीवन में खुशियां ही खुशियां भर गईं. बुधवार का व्रत करने से स्त्री-पुरुष के जीवन में सभी मंगलकामनाएं पूरी होती हैं.

बुधवार व्रत के दिन क्या-क्या करना चाहिए? 
WordPress.com

बुधवार व्रत के दिन भगवान शिव को सफेद फूल तथा हरे रंग की वस्तुएं चढ़ाई जानी चाहिए तथा ब्राह्मणों को भोजन करवाकर यथाशक्ति दान देना चाहिए. इस दिन व्रती को हरे-पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए. इस दिन व्रती को एक समय ही बिना नमक का भोजन करना चाहिए. पन्ना रत्न धारण करना शुभ होता है. व्रतधारी को किसी भी रूप में व्रतकथा को बीच में छोड़कर, प्रसाद ग्रहण किए बिना कहीं नहीं जाना चाहिए. व्रत में हरी वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए. मूंग का हलवा, हरे फल, छोटी इलाइची का विशेष महत्व है.

बुधवार व्रत से लाभ

बुधवार का नियमित व्रत करने से सर्व-सुखों की प्राप्ति होती है. जीवन में किसी भी प्रकार का अभाव नहीं रहता. इससे अनिष्टकारी ग्रहों की शांति होती है. इस व्रत को करने से बुद्धि बढ़ती है.

मंगलवार व्रत विधि एवं कथा

WordPress.com

हिंदू धर्म के शास्त्रों के अनुसार मंगलवार के दिन हनुमानजी की पूजा होती है। इस दिन मंदिरों में हनुमानजी की विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं ।नारद पुराण के अनुसार मंगलवार के व्रत से भयंकर चिंताओं का अंत होता है। साथ के साथ शनि की महादशा या साढ़ेसाती भी दूर हो जाती है।


मंगलवार व्रत विधि

मंगलवार का व्रत रखने वाले भक्तों को मंगलवार के दिन ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करना चाहिए प्रत्येक मंगलवार को सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं स्नान करने के बाद लाल रंग का वस्त्र धारण करने चाहिए | इसके बाद लाल फूल ,लाल सिंदूर ,लाल कपड़े हनुमान जी को चढ़ाने चाहिए और पूरे भक्ति भाव से हनुमान जी के सामने बैठकर दीपक जलाने के बाद हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए |

शाम के समय हनुमान जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाकर बिना नमक का भोजन करना चाहिए | खीर का भी भोग लगाया जा सकता है |

मंगलवार के व्रत का फल 

मंगलवार के व्रत के बारे में मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है | उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। और शनि ग्रह से होने वाली परेशानियां भी दूर हो जाती हैं ।मांगलिक दोष वाले जातकों को मंगलवार का व्रत बहुत फायदा करता है।


हिंदू शास्त्रों के अनुसार मंगलवार को भगवान हनुमान जी की पूजा होती है । जो लोग मंगलवार का व्रत रखते हैं उनकी सुख, सम्मान, पुत्र की प्राप्ति जैसी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । आइए पढ़ें मंगलवार की व्रत कथा –

WordPress.com

मंगलवार व्रत कथा 

एक नगर में ब्राह्मण दंपत्ति रहता था | उनके कोई संतान नहीं थी जिसकी वजह से वह बहुत दुखी रहते थे। एक समय ब्राह्मण ने वन वन जाकर हनुमान जी की पूजा करने का निश्चय किया और उसने एक पुत्र प्राप्ति की कामना की | घर पर उसकी पत्नी भी मंगलवार को व्रत रखती थी | व्रत के अंत में हनुमान जी को भोग लगाकर ही भोजन करती थी।

एक दिन ब्राह्मणी भोजन नहीं बना पाई और भगवान हनुमान जी को भी भोग नहीं लगा सकी। उसने निश्चय किया कि वह अगले मंगलवार तक कुछ ग्रहण नहीं करेगी और वह 6 दिन तक बिना खाए – पिए रही | जब अगला मंगलवार आया तो वह बेहोश हो गई हनुमान जी उसकी त्याग और निष्ठा को देखकर प्रसन्न हुए उन्होंने आशीर्वाद दिया कि तुझे एक पुत्र की प्राप्ति होगी और वह तेरी बहुत सेवा करेगा। कुछ समय बाद ब्राह्मणी को एक पुत्र प्राप्ति हुई | बालक को पाकर ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुई उस ने बालक का नाम मंगल रखा।

ब्राह्मण वन से वापस आकर उस बालक को घर पर देखता है और ब्राह्मणी से पूछता है कि यह बालक कौन है? ब्राह्मणी ने बताया मंगलवार के व्रत से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने यह बालक दिया है | ब्राह्मण को अपनी पत्नी की बात पर विश्वास नहीं हुआ और ब्राह्मणी बाहर गई हुई थी तो ब्राह्मण ने बालक को कुएं में फेंक दिया।

घर पर लौटने पर ब्राह्मणी ने जब मंगल को घर में नहीं देखा तो वह घबरा गई और ब्राह्मण से पूछा कि मंगल कहां है? तभी मंगल पीछे से मुस्कुरा कर आ गया | उसे वापस देखकर ब्राह्मण बहुत आश्चर्यचकित रह गया | रात को हनुमान जी ने ब्राह्मण को सपने में दर्शन दिए और बताया कि यह बालक मैंने ही दिया है।

ब्राह्मण को यह सत्य जानकर बहुत खुशी हुई | इसके बाद ब्राह्मण दंपत्ति रोजाना मंगलवार व्रत रखने लगे | जो भी मनुष्य मंगलवार का व्रत निष्ठा और विश्वास से रखता है उसकी सारी मनोकामनाएँ सहज ही पूरी हो जाती हैं |