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इस वर्ष दीपावली कैसे मनायेँ || (दीपावली कैलेण्डर 2018/2019/2020 )

चाँद के क्रम के आधार पर दीपावली का पर्व हर साल सामान्यतः अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। यह हिंदू चंद्र कैलेंडर में सबसे पवित्र महीना माना जाता है जो क़ि कार्तिक माह के 15 वें दिन मनाया जाता है।

इस वर्ष 2018 में, दीपावली का पावन पर्व  7 नवंबर को मनाया जायेगा। जबकि यह एक दिन पहले दक्षिण भारत में 6 नवंबर को मनाया जायेगा। 2019 में, दिवाली 27 अक्टूबर को और 2020 में, यह 14 नवंबर को पड़ेगा।

दीपावली की विस्तृत जानकारी

दीपावली का त्यौहार वास्तव में भारत के अधिकांश स्थानों में तीसरे दिन होने वाले मुख्य उत्सवों के साथ पांच दिनों तक चलता है।

01. दीपावली का पहला दिन धनतेरस के रूप में जाना जाता है। "धन" का अर्थ है धन और "तेरा" हिंदू कैलेंडर पर चंद्र पखवाड़े के 13 वें दिन को संदर्भित करता है इसलिये इसे धनतेरस के नाम से जाना जाता है । यह दिन समृद्धि मनाने के लिए समर्पित होता है। इस दिन लोग देवी लक्ष्मी का अपने घर में स्वागत करते हैं, भारत के बहुत से हिस्से में माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लोग सोने का सामान खरीदते हैं कुछ लोग स्टील के सामान को खरीदना भी शुभ मानते हैं, भारत के कई हिस्से में कुछ जगहों पर लोग कार्ड और जुआ खेलने के लिए एकत्रित होते हैं। और ऐसा भी माना जाता है क़ि जो व्यक्ति जुये में जीत जाये समझो क़ि माँ लक्ष्मी उस व्यक्ति पर पूर्ण रूप से प्रसन्न हैं।

धनतेरस को धन त्रयोदशी भी कहा जाता है और यह दिवाली की शुरुआत के रूप में एक बड़ा महत्व रखता है। इस शुभ दिन देवी माँ लक्ष्मी  और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है।  इस दिन लोग सुबह शीघ्र स्नान करके नए कपड़े पहनते हैं, अपने घर को भिन्न भिन्न प्रकार से सजाते हैं और अपने घर के प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाते हैं। इस तरह वे देवी लक्ष्मी का स्वागत करते हैं। महिलायेँ चावल के आटे या गुल पाउडर के साथ छोटे पैरों के निशान भी बनाती हैं। ये छोटे पैरों के निशान देवी लक्ष्मी की उपस्थिति को दर्शाते हैं। वे प्रकाश, दया और धन की देवी का सम्मान करते हैं। व्यापारी अपने कार्यालयों को सजाने और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। घर की औरतें अपने रसोई घर के लिए कुछ नए बर्तन खरीदते हैं।  सूर्यास्त के बाद, भगवान यम जो क़ि मृत्यु के देवता के रूप में जाने जाते हैं के लिए घर की महिलायेँ भगवान गणेश, देवी माँ लक्ष्मी तथा भगवान कुबेर के सामने दीपक प्रज्वलित करती हैं यह दीपक पूरे रात को भगवान के सम्मान के लिए हिंदू परंपरा के रूप में रखा जाता है।


पूजा विधान

शाम के समय परिवार के सभी सदस्य एक साथ इकट्ठा होते हैं और प्रार्थना शुरू करते हैं। वे भगवान गणेश की पूजा आराधना  करते हैं और उससे पहले, उन्हें स्नान कराते हैं और उन्हें चन्दन के पेस्ट से अभिषेक करते हैं। भगवान को एक लाल कपड़ा पहनाया जाता है और फिर भगवान गणेश, देवी माँ लक्ष्मी तथा भगवान कुबेर की मूर्ति पर ताजा फूल चढ़ाते हैं और प्रभु के सामने दीपक जलाया जाता है उसके बाद परिवार के सभी सदस्य मंत्रोउच्चारण के साथ पूजा करते हैं और प्रभु से अपना आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

श्री गणेश जी की पूजा करते समय निम्नलिखित मंत्र का जप करें

वक्रुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ । 
निर्विघ्नु कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।


अर्थात : "मैं श्री गणेश से प्रार्थना करता हूं जिनके पास एक घुमावदार सूंड, बड़ा शरीर है, और जिसके पास लाखों सूर्यों का प्रतिभा है, हे भगवान, कृपया मेरे सभी कार्यों को हमेशा के लिए बाधाओं से मुक्त करें"


धनवंतरी देवता की पूजा

बहुत से लोग आयुर्वेद के संस्थापक भगवान धनवंतरी की पूजा भी करते हैं। और अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं और अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। वर्धमानी के साथ भगवान धनवंतरी की मूर्ति को स्नान और अभिषेक करने के बाद, भगवान को 9 प्रकार की अनाज अर्पित की जाती है।

धनवंतरी देवता की पूजा करने के समय लोग निम्नलिखित मंत्र का जप करते हैं:

"ओम नमो भगवते महा सुदर्शन वासुदेवाय धनवंताराय; अमृत कलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वमय निवारण्ये त्रिलोक्य पतये त्रिलोक्य निधये श्री महा विष्णु स्वरूपा श्री धन्वंतरि स्वरुप श्री श्री श्री औषत चक्र नारायण स्वाहा"

अर्थात : हम भगवान से प्रार्थना करते हैं, जो सुदर्शन वासुदेव धनवंतरी है। जो अमरत्व के अमृत से भरा कलश रखता है। जो भगवान धनवंतरी सभी भय और बीमारियों को हटा देता है। वह तीनों दुनिया का शुभचिंतक और संरक्षक हैं। भगवान विष्णु की तरह, धनवंत्री को हमारी आत्माओं को पवित्र करने का अधिकार है। हम आयुर्वेद के भगवान के सामने अपने शीश झुकाते हैं।

भगवान कुबेर की पूजा

भगवान कुबेर की पूजा करते समय सामने दीपक जला के उनको फूल, धूप, फल, मिठाई इत्यादि अर्पित की जाती है।

पूजा करते समय लोग निम्नलिखित मंत्र का जप करते हैं:

"ॐ यक्ष्य कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यादि पादयेह धन-धान्य साम्रीद्धीन्ग में देहि दपय स्वाहा"

अर्थात : यक्षों के स्वामी कुबेर, हमें धन और समृद्धि के साथ आशीर्वाद दें।


देवी लक्ष्मी की पूजा

सामान्यतः सूर्यास्त के बाद ढाई घंटे तक जसिको प्रदोष काल कहा जाता है इस समय पर देवी माँ लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है, अनुष्ठान शुरू करने के पूर्व एक साफ़ चौकी रखें उसके ऊपर लाल या पीले कलर का साफ़ सुथरा कपडा बिछा दें, इस कपडे पर चावल के कच्चे दाने बिछा कर उसके ऊपर देवी माँ लक्ष्मी तथा भगवान् गणेश की मूर्ति या फोटो रखें, फिर कुमकुम से उन्हें तिलक लगायें।

अब माँ लक्ष्मी तथा भगवान श्री गणेश के सामने पुनः कच्चे चावल के दाने बिछा कर अब उसके ऊपर गंगा जल मिश्रित आधा भरा हुआ कलश रखें उस कलश के अंदर एक अखरोट, एक फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डाल दें।  अब कलश में आम के पांच पत्तों को इस प्रकार से रखें की वे बराबर दुरी पर हों और आधा कलश के अन्दर तथा आधा कलश के बहार खिले हुए अवस्था में हों इस प्रकार से आम के पत्तियों के ऊपर अब कलेवा बंधा हुआ पानी वाला नारियल रख दें, आपकी पूजा को शुभता प्रदान करने के लिए अब कलश तथा नारियल के ऊपर कुमकुम से स्वस्तिक का निशान भी बना दें।

यह सब विधि हो जाने के पश्चात् दिया जलायेँ और प्रभु को फूल, फल, धूप, मिठाई, पंचमृत (दूध, दही, घी, मक्खन और शहद का मिश्रण) इत्यादि अर्पित करें और मंत्रो का जाप करें

पूजा करते समय निम्नलिखित मंत्रो का जाप करें:

"ॐ शृं हृम शृं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ शृं हृम शृं महालक्ष्म्यै नमः"






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