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दुर्गा नवरात्री पूजा, व्रत, आरती एवं आराधना - वर्ष 2018


प्रिय मित्रो इस बार भी हम सभी माँ दुर्गा के शुभ पर्व "नव रात्रि" के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं आइये जानते हैं क़ि इस वर्ष 2018 में किस दिन से दुर्गा नवरात्रि प्रारम्भ होने वाली है और इस वर्ष हम माँ दुर्गा क़ि पूजा तथा आराधना कैसे करें, उनका आशीर्वाद किए प्राप्त करें तथा इस पावन पर्व को पूरे हर्षो उल्लास के साथ कैसे मनायेँ



मित्रो इस वर्ष नवरात्रि कैलेंडर के अनुसार यह शुभ नव दिन निम्न लिखित हैं

नवरात्रि
दिन
तारिख़
पहला  दिन
बुधवार
10-Oct-2018
दूसरा  दिन
गुरुवार
11-Oct-2018
तीसरा  दिन
शुक्रवार
12-Oct-2018
चौथा दिन
शनिवार
13-Oct-2018
पांचवा दिन
रविवार
14-Oct-2018
छठवा दिन
सोमवार
15-Oct-2018
सातवा दिन
मंगलवार
16-Oct-2018
आठवा दिन
बुधवार
17-Oct-2018
नौवां दिन
गुरुवार
18-Oct-2018
विजयदशमी
शुक्रवार
19-Oct-2018

सभी मित्रो को मै यहाँ ये बता दूँ क़ि आज भी लोगों को ये नहीं पता क़ि एक वर्ष में पाँच नवरात्रियाँ होती हैं जैसे क़ि शरद (मुख्य) नवरात्री, चैत्र नवरात्री , गुप्त नवरात्री, पौष नवरात्री तथा मघा गुप्त नवरात्री, इनका क्या महत्वा होता है आइये इसके बारे में विस्तार से जाने।

शरद  या अश्वीन नवरात्री (मुख्य नवरात्री)

शरद, अश्वीन या मुख्य नवरात्री में लोग मां दुर्गा के नौ अवतारों की पूजा करते हैं। नवरात्रि त्यौहार, सर्वोच्च देवी माँ दुर्गा को समर्पित होता है जिसमे हम माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों क़ि पूजा करते हैं जो की निम्नलिखित हैं


नवरात्रि
देवी
पहला  दिन
शैलपुत्री
दूसरा  दिन
ब्रम्हचारिणी
तीसरा  दिन
चंद्रघंटा
चौथा दिन
कुसमंदा
पांचवा दिन
स्कंदमाता
छठवा दिन
कात्यायिनी
सातवा दिन
कालरात्रि
आठवा दिन
महागौरी
नौवां दिन
सिद्धिदात्री

चंद्र हिंदू कैलेंडर के अनुसार, शरद नवरात्रि उत्सव शरद रितु के दौरान अश्विन के महीने में शुरू होता है। शारदिया नवरात्रि नाम शरद रितु के महीने से लिया जाता है। यह पर्व शरद नवरात्रि के दौरान जो की शीतकालीन मौसम की शुरुआत भी है में यह नवरात्री का पर्व मनाया जाता है जो क़ि न केवल उत्तर भारत और पश्चिमी भारत में मनाया जाता है बल्कि पूरे भारत में विशाल धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। पूर्वी भारत में, इसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। शरद नवरात्रि के दसवें दिन, बुराई पर विजय का प्रतिक "दशहरा" का त्यौहार मनाया जाता है।


चैत्र नवरात्री (राम नवमी)

हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, चैत्र नवरात्रि उत्सव चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत में "हिंदू नव वर्ष" भी शुरू होता है। यह उत्तरी भारत और पश्चिमी भारत में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में, लोग इस नवरात्रि के पहले को दिन गुडी पाडवा के रूप में मनाते हैं। चैत्र नवरात्रि के दौरान, लोग राम नवमी त्यौहार मनाते हैं, जो भगवान राम को समर्पित है।


गुप्त नवरात्री

गुप्‍त नवरात्रि का अर्थ गोपनीय होता है। यह एक ऐसी पूजा होती है जिसमें देवी माँ की तांत्रिक पूजा की जाती है। जहां मुख्य नवरात्र में शैलपुत्री से सिद्धिदात्री तक की पूजा की जाती है। वहीं गुप्त नवरात्रि में काली, तारादेवी, त्रिपुर सुंदरी, धूमवती, बंगलामुखी, मातंगी और कमला देवी के तांत्रिक स्वरूपों की पूजा की जाती है।


पौष नवरात्रि

पौष नवरात्रि को शाकम्भरी नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है, जो देवी शाकम्भरी को समर्पित है। यह नवरात्रि पौष महीने के शुक्ल पक्ष के 8 वें दिन से शुरू होता है और पौष महीने के ही पूर्णिमा के 15 वें दिन समाप्त होता है।


माघ गुप्त नवरात्रि

माघ नवरात्रि गुप्त नवरात्रि है। यह नवरात्रि माघ महीने के शुक्ल पक्ष के चंद्रमा के पहले दिन से शुरू होता है और माघ महीने के ही शुक्ल पक्ष चंद्रमा के 9वें दिन समाप्त होता है। असाढ़ नवरात्रि के समान ही यह नवरात्री भी सभी के लिए नहीं होता है बल्कि ये नवरात्री कुछ एक ऐसे तांत्रिक साधकों के लिए होता है जो की सिद्धि प्राप्त करने के लिए एक विशेष पूजा करते हैं।


मित्रों तो चलीये अब हम विस्तार से जानते है की शरद नवरात्री (मुख्य नवरात्री) में माँ दुर्गा देवी की उपासना कैसे करें?


नवरात्री पूजा विधि : 

नवरात्री में घट स्थापना का एक बहुत बड़ा महत्त्व है। नवरात्री की शुरुआत घट स्थापना से ही की जाती है। जिसमे कलश को सुख, समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उन्हें कार्यरत किया जाता है। जिससे घर की सभी विपदा दायक कारक नष्ट हो जाती हैं तथा घर में सुख, शांति तथा समृद्धि की आवक बनी रहती है।

नवरात्रि में पूजा करने के लिए, सबसे पहले आपको सुबह जल्दी उठना होता है। जिसमे पूजा करने के लिए सूर्योदय को सबसे अच्छा समय माना जाता है। सुबह उठ कर सबसे पहले स्नान करें और साफ सुथरे धुले हुवे कपड़े पहनें।

घटस्थापना की विधि : 

घटस्थापना में एक पात्र में जौ बोया जाता है अतः जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे क़ि कलश रखने के बाद भी आस पास जगह बनी रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो ज्यादा श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत डाल दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक और परत मिटटी की बिछा दें। और एक बार फिर से जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें दें।

कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें।

कलश में साबुत सुपारी, फूल तथा सिक्का डालें। अब कलश में आम के कुछ पत्ते रखें, पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें उन्हें इस प्रकार से लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें। नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें।


माँ दुर्गा देवी के चौकी की स्थापना और उनकी पूजा विधि 

लकड़ी की एक चौकी लें और उसे गंगाजल तथा शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें। अब साफ़ जल से धुले हुए उस चौकी को साफ कपड़े से पोंछ कर उस पर स्वच्छ लाल कपड़ा बिछा दें। ध्यान रहे की चौकी कलश के दांयी तरफ हो। अब चौकी पर माँ दुर्गा की मूर्ती या फ्रेम किया हुआ फोटो रख दें। अब माँ को चुनरी ओढ़ाएँ और फूल माला इत्यादि चढ़ाये तथा  धूप , दीपक आदि जलाएँ। 

देवी दुर्गा की प्रतिमा के बाईं ओर दीपक रखें और उसे अखंड ज्योत का रूप दें और पुरे नवरात्र भर उस अखण्ड ज्योति को प्रकाशमान रखें इसिलिये नवरात्री के समय हमेशा घर पर या मंडप पर किसी को रखने की सलाह दी जाती है। शास्त्रों में घर पर या मंडप पर कम से कम एक व्यक्ति के होने का सुझाव मिलता है। देवी दुर्गा के मूर्ति के दाहिने हाथ पर, धूप या अगरबत्ती रखें। पूजा करने के लिए स्वयं को पूर्ण भक्ति और एकाग्रता के साथ तैयार रखें। यदि अखंड ज्योत जलाना आपके लिए संभव न हो तो आप सिर्फ पूजा के समय ही दीपक जला सकते है |

अब देवी मां को तिलक लगाए। माँ दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध इत्यादि अर्पित करें तथा काजल लगाएँ। साथ ही मंगलसूत्र, हरी चूडियां, माला, फूल, फल, मिठाई, इत्र, आदि अर्पित करें।

माँ दुर्गा देवी के पूजा के दौरान श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ, देवी माँ के स्रोत ,दुर्गा चालीसा का पाठ, सहस्रनाम आदि का पाठ करें। 

फिर अग्यारी तैयार करें जिसके लिए मिटटी का एक पात्र लें और उसमे गोबर के उपले को जलाकर अग्यारी जलाये 

अब घर में जितने सदस्य है उन सदस्यो के हिसाब से लॉन्ग के जोडे बनाये लॉन्ग के जोड़े बनाने के लिए आप बताशो में लॉन्ग लगाएं यानिकि एक बताशे में दो लॉन्ग ये एक जोड़ा माना जाता है और जो लॉन्ग के जोड़े बनाये है फिर उसमे कपूर और सामग्री चढ़ाये और अग्यारी प्रज्वलित करे

देवी माँ की आरती करें।  पूजन के उपरांत वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें।  रोजाना देवी माँ का पूजन करें तथा जौ वाले पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें। जल बहुत अधिक या कम ना छिड़के। जल इतना हो कि जौ अंकुरित हो सके। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते है। यदि इनमे से किसी अंकुर का रंग सफ़ेद हो तो उसे बहुत अच्छा माना जाता है।

नवरात्री के व्रत की विधि 

नवरात्रि के दिनों में जो लोग व्रत करते हैं वे केवल फलाहार पर ही पुरे दिन रहते हैं. फलाहार का अर्थ है, फल एवं और कुछ अन्य विशिष्ट सब्जियों से बने हुए खाने, फलाहार में सेंधा नमक का इस्तेमाल होता है. नवरात्री के नववें दिन पूजा के बाद ही उपवास खोला जाता है. जो लोग नवरात्री में पुरे आठ दिनों तक व्रत नहीं रख सकते वे पहले और आख़िरी दिन उपवास रख लेते हैं, व्रत रखने वालो को जमीन पर सोना चाहिए  नवरात्री के व्रत में अन्न नही खiनi चाहिए बल्कि सिंघाडे के आटे की लप्सी, सूखे मेवे, कुटु के आटे की पूरी, समां के चावल की खीर, आलू ,आलू का हलवा भी लें सकते है, दूध, दही, घीया इन सब चीजो का फलाहार करना चाहिए और सेंधा नमक तथा काली मिर्च का प्रयोग करना चाहिए दोपहर को आप चाहे तो फल भी लें सकते है  

हालाँकि व्रत के दिनों में अपने आहार को ध्यान में रखते हुए देवी माँ की सुबह और शाम दोनों ही समय पुरे भक्ति और भाव के साथ पूजा करनी चाहिये


देवी माँ श्री दुर्गा जी का मंत्र 

सर्व मंगल मांगले शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रियुम्बिके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते।। या देवी सर्व भुतेसू लक्ष्मी रूपेण संस्थिता | नम: तस्ये नम: तस्ये नम: तस्ये नमो नम:||


देवी माँ श्री दुर्गा जी की आरती 


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देवी माँ श्री दुर्गा जी की चालीसा


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नवरात्री व्रत कथा

प्रातः काल उठकर स्नान करके, मन्दिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गा जी का ध्यान करके यह कथा पढ़नी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष फलदायक है। श्री जगदम्बा की कृपा से सब विघ्न दूर होते हैं। कथा के अन्त में बारम्बार ‘दुर्गा माता तेरी सदा ही जय हो’ का उच्चारण करें।  



कथा प्रारम्भ  

बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण। आप अत्यन्त बुद्धिमान, सर्वशास्त्र और चारों वेदों को जानने वालों में श्रेष्ठ हो। हे प्रभु! कृपा कर मेरा वचन सुनो। चैत्र, आश्विन और आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? हे भगवान! इस व्रत का फल क्या है? किस प्रकार करना उचित है? और पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहो? 

बृहस्पति जी का ऐसा प्रश्न सुनकर ब्रह्मा जी कहने लगे कि हे बृहस्पते! प्राणियों का हित करने की इच्छा से तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेवी, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं, यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख चाहने वाले को सुख मिल सकता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है और कारागार हुआ मनुष्य बन्धन से छूट जाता है। मनुष्य की तमाम आपत्तियां दूर हो जाती हैं और उसके घर में सम्पूर्ण सम्पत्तियां आकर उपस्थित हो जाती हैं। बन्ध्या और काक बन्ध्या को इस व्रत के करने से पुत्र उत्पन्न होता है। समस्त पापों को दूूर करने वाले इस व्रत के करने से ऐसा कौन सा मनोबल है जो सिद्ध नहीं हो सकता। जो मनुष्य अलभ्य मनुष्य देह को पाकर भी नवरात्र का व्रत नहीं करता वह माता-पिता से हीन हो जाता है अर्थात् उसके माता-पिता मर जाते हैं और अनेक दुखों को भोगता है। उसके शरीर में कुष्ठ हो जाता है और अंग से हीन हो जाता है उसके सन्तानोत्पत्ति नहीं होती है। इस प्रकार वह मूर्ख अनेक दुख भोगता है। इस व्रत को न करने वला निर्दयी मनुष्य धन और धान्य से रहित हो, भूख और प्यास के मारे पृथ्वी पर घूमता है और गूंगा हो जाता है। जो विधवा स्त्री भूल से इस व्रत को नहीं करतीं वह पति हीन होकर नाना प्रकार के दुखों को भोगती हैं। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और उस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा करे।  

हे बृहस्पते! जिसने पहले इस व्रत को किया है उसका पवित्र इतिहास मैं तुम्हें सुनाता हूं। तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण! मनुष्यों का कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।  

ब्रह्मा जी बोले- पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त मनो ब्रह्मा की सबसे पहली रचना हो ऐसी यथार्थ नाम वाली सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर पुत्री उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने घर के बालकपन में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्लपक्ष में चन्द्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम करता था। उस समय वह भी नियम से वहां उपस्थित होती थी। एक दिन वह सुमति अपनी सखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ठी और दरिद्री मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।   

इस प्रकार कुपित पिता के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी कि हे पिताजी! मैं आपकी कन्या हूं। मैं आपके सब तरह से आधीन हूं। जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है मेरा तो इस पर पूर्ण विश्वास है। 

मनुष्य जाने कितने मनोरथों का चिन्तन करता है पर होता वही है जो भाग्य में विधाता ने लिखा है जो जैसा करता है उसको फल भी उस कर्म के अनुसार मिलता है, क्यों कि कर्म करना मनुष्य के आधीन है। पर फल दैव के आधीन है। जैसे अग्नि में पड़े तृणाति अग्नि को अधिक प्रदीप्त कर देते हैं उसी तरह अपनी कन्या के ऐसे निर्भयता से कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राह्मण को अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ- जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो। देखें केवल भाग्य भरोसे पर रहकर तुम क्या करती हो?  

इस प्रकार से कहे हुए पिता के कटु वचनों को सुनकर सुमति मन में विचार करने लगी कि - अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह सुमति अपने पति के साथ वन चली गई और भयावने कुशयुक्त उस स्थान पर उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की। उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देखकर भगवती पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहने लगीं कि हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुम पर प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो वरदान मांग सकती हो। मैं प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली हूं। इस प्रकार भगवती दुर्गा का वचन सुनकर ब्राह्मणी कहने लगी कि आप कौन हैं जो मुझ पर प्रसन्न हुई हैं, वह सब मेरे लिए कहो और अपनी कृपा दृष्टि से मुझ दीन दासी को कृतार्थ करो। ऐसा ब्राह्मणी का वचन सुनकर देवी कहने लगी कि मैं आदिशक्ति हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या और सरस्वती हूं मैं प्रसन्न होने पर प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।  

तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतान्त सुनाती हूं सुनो! तुम पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तेरे को और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्रों के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल ही पिया। इसलिए नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर तुम्हें मनवांछित वस्तु दे रही हूं। तुम्हारी जो इच्छा हो वह वरदान मांग लो।  

इस प्रकार दुर्गा के कहे हुए वचन सुनकर ब्राह्मणी बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे! आपको प्रणाम करती हूं। कृपा करके मेरे पति के कुष्ठ को दूर करो। देवी कहने लगी कि उन दिनों में जो तुमने व्रत किया था उस व्रत के एक दिन का पुण्य अपने पति का कुष्ठ दूर करने के लिए अर्पण करो मेरे प्रभाव से तेरा पति कुष्ठ से रहित और सोने के समान शरीर वाला हो जायेगा। ब्रह्मा जी बोले इस प्रकार देवी का वचन सुनकर वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से ठीक है ऐसे बोली। तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ठहीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया जिसकी कान्ति के सामने चन्द्रमा की कान्ति भी क्षीण हो जाती है वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देखकर देवी को अति पराक्रम वाली समझ कर स्तुति करने लगी कि हे दुर्गे! आप दुर्गत को दूर करने वाली, तीनों जगत की सन्ताप हरने वाली, समस्त दुखों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न होने पर मनवांछित वस्तु को देने वाली और दुष्ट मनुष्य का नाश करने वाली हो। तुम ही सारे जगत की माता और पिता हो। हे अम्बे! मुझ अपराध रहित अबला की मेरे पिता ने कुष्ठी के साथ विवाह कर मुझे घर से निकाल दिया। उसकी निकाली हुई पृथ्वी पर घूमने लगी। आपने ही मेरा इस आपत्ति रूपी समुद्र से उद्धार किया है। हे देवी! आपको प्रणाम करती हूं। मुझ दीन की रक्षा कीजिए।  

ब्रह्माजी बोले- हे बृहस्पते! इसी प्रकार उस सुमति ने मन से देवी की बहुत स्तुति की, उससे हुई स्तुति सुनकर देवी को बहुत सन्तोष हुआ और ब्राह्मणी से कहने लगी कि हे ब्राह्मणी! उदालय नाम का अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीघ्र होगा। ऐसे कहकर वह देवी उस ब्राह्मणी से फिर कहने लगी कि हे ब्राह्मणी और जो कुछ तेरी इच्छा हो वही मनवांछित वस्तु मांग सकती है ऐसा भवगती दुर्गा का वचन सुनकर सुमति बोली कि हे भगवती दुर्गे अगर आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्रि व्रत विधि बतलाइये। हे दयावन्ती! जिस विधि से नवरात्र व्रत करने से आप प्रसन्न होती हैं उस विधि और उसके फल को मेरे लिए विस्तार से वर्णन कीजिए।  

इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुनकर दुर्गा कहने लगी हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हारे लिए सम्पूर्ण पापों को दूर करने वाली नवरात्र व्रत विधि को बतलाती हूं जिसको सुनने से समाम पापों से छूटकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधि पूर्वक व्रत करे यदि दिन भर का व्रत न कर सके तो एक समय भोजन करे। पढ़े लिखे ब्राह्मणों से पूछकर कलश स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचे। महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती इनकी मूर्तियां बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करे और पुष्पों से विधि पूर्वक अध्र्य दें। बिजौरा के फूल से अध्र्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से कीर्ति, दाख से कार्य की सिद्धि होती है। आंवले से सुख और केले से भूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों से अध्र्य देकर यथा विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, विल्व, नारियल, दाख और कदम्ब इनसे हवन करें गेहूं होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। खीर व चम्पा के पुष्पों से धन और पत्तों से तेज और सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति और केले से पुत्र होता है। कमल से राज सम्मान और दाखों से सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। खंड, घी, नारियल, जौ और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता से प्रणाम करे और व्रत की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। इसमें तनिक भी संशय नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है, उसका करोड़ों गुना मिलता है। इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ मंदिर अथवा घर में ही विधि के अनुसार करें।  

ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अन्तध्र्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूर्वक करता है वह इस लोक में सुख पाकर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता हे। हे बृहस्पते! यह दुर्लभ व्रत का माहात्म्य मैंने तुम्हारे लिए बतलाया है। बृहस्पति जी कहने लगे- हे ब्राह्मण! आपने मुझ पर अति कृपा की जो अमृत के समान इस नवरात्र व्रत का माहात्म्य सुनाया। हे प्रभु! आपके बिना और कौन इस माहात्म्य को सुना सकता है? ऐसे बृहस्पति जी के वचन सुनकर ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! तुमने सब प्राणियों का हित करने वाले इस अलौकिक व्रत को पूछा है इसलिए तुम धन्य हो। यह भगवती शक्ति सम्पूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है।  


-----सब प्रेम से बोलो दुर्गा मैया की जय-----

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