भक्त बंधुओं एवं बहनो गुरुवार या बृहस्पतिवार की
कथा कहने से पहले हम आपको बृहस्पतिवार के व्रत की विधि बताएँगे बृहस्पतिवार के दिन
जो भी स्त्री या पुरुष व्रत करे उसको चाहिए की वो दिन में एक ही समय भोजन करे
क्यों की बृहस्पतेश्वर भगवान का उस दिन पूजन होता है, भोजन पीले चने की दाल आदि
का करें परन्तु नमक नहीं खाएं, पीले वस्त्र पहनें तथा भोजन में पीले ही फलों का
प्रयोग करें, पीले चन्दन से पूजन करें, पूजन के बाद प्रेम पूर्वक गुरु महाराज की कथा सुननी चाहिए|
इस व्रत को करने से मन की इच्छाएं पूरी होती हैं
और बृहस्पति महाराज प्रसन्न होते हैं| धन, विद्या, पुत्र तथा मनोवांक्षित फलों की प्राप्ति होती है परिवार में सुख और
शांति रहती है इसीलिए ये व्रत सर्वश्रेष्ठ व अति फलदायक सब स्त्री और पुरुषों के
लिए है इस व्रत में केले का पूजन करना चाहिए, कथा और पूजन के समय मन, कर्म तथा वचन से शुद्धः
होकर जो इच्छा हो बृहस्पति देव से प्रार्थना करनी चाहिए उसकी इच्छाओं को बृहस्पति
देव अवश्य पूर्ण करते हैं ऐसा मन में दृढ विश्वास रखना चाहिए|
अब
आप बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुनिए
एक समय की बात है कि
भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वो बड़ा ही प्रतापी और दानी था नित्य प्रति
मंदिर में दर्शन करने जाता था, ब्राम्हण और गुरुओं कि सेवा किया
करता था उसके दरवाजे से कोई भी निराश होकर नहीं लौटता था, वो
प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं पूजन करता था, हर एक दिन गरीबों की
सहायता करता परन्तु ये सब बातें उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी वो न तो व्रत
करती और ना ही एक पैसा किसी को दान में देती थी तथा राजा से भी ऐसा करने को मना
किया करती थी|
एक समय की बात है कि
राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे उस समय घर पर केवल रानी और दासी थी ठीक उसी समय
गुरु बृहस्पति देव एक साधु का रूप धारण करके राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने गए, जब
उन्होंने रानी से भिक्षा मांगी तो वो कहने
लगी कि हे साधु महाराज मै इस दान और पुण्य से तंग आ गयी हूँ मेरे से तो घर का ही
कार्य समाप्त नहीं होता इस कार्य के लिए तो मेरे पति देव ही बहुत हैं अब आप इस
प्रकार कि कृपा करें कि ये सब धन नष्ट हो जाये तथा मै आराम से रह सकूँ, साधु
बोले… हे देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो संतान और धन से कोई दुखी नहीं होता है इसको सभी
चाहते हैं पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करता है अगर आपके पास धन अधिक है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणो को दान दो धर्मशाला बनवाओ, कुआ, तालाब बावड़ी, बाग़, बगीचे आदि का निर्माण करवाओ तथा निर्धन मनुष्यों कि कुंवारी कन्याओं का विवाह
करवाओ और अनेकों यज्ञादि धर्म करो इस प्रकार के कर्मो से आपके कुल का और आपका नाम
परलोक में सार्थक होगा एवं स्वर्ग कि प्राप्ति होगी| मगर वो रानी इन बातों से खुश नहीं हुई वो बोली हे साधु महाराज मुझे ऐसे धन कि
भी आवश्यकता नहीं जिसको और मनुष्यो को दान दूँ तथा जिसको रखने सम्हालने में ही
मेरा सारा समय बर्बाद हो जाये साधु ने कहा देवी तुम्हारी अगर ऐसी ही इच्छा है तो
ऐसा ही होगा मै तुम्हे बताता हूँ वैसा ही करना बृहस्पतिवार के दिन घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को धोना, केशों
को धोते समय स्नान करना, राजा से कहना वो हज़ामत
करवाए, भोजन में मांस मदिरा का सेवन करना, कपडा धोबी के यहाँ धुलने देना इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा सब धन
नष्ट हो जायेगा ये कहकर साधु महाराज वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए रानी ने साधु के कहे अनुसार वैसा ही किया और अभी
तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उनकी समस्त धन संपत्ति नष्ट हो गयी और भोजन के लिए
दोनों समय परिवार तरसने लगा तथा सांसारिक भोगो से दुखी रहने
लगे तब वो राजा रानी से कहने लगा कि हे रानी तुम यहाँ रहो मै दूसरे देश को जाता
हूँ क्यों कि मुझे यहाँ पर सभी मनुष्य जानते हैं इसीलिए यहाँ कोई कार्य भी नहीं कर
सकता देश चोरी परदेस भीख बराबर है ऐसा कह कर राजा परदेस चला गया
वहां जंगल में जाता और लकड़ी काट कर लता और शहर में बेचता इस तरह जीवन व्यतीत करने
लगा| इधर राजा के घर रानी और दासी दुखी रहने लगी किसी दिन भोजन मिलता और किसी दिन
तो जल पीकर ही रह जाती एक समय रानी और दासी को सात दिन बिना भोजन के व्यतीत हो गए
तो रानी ने अपनी दासी से कहा हे दासी यहाँ पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है वो
बड़ी धनवान है तू उसके पास जा और पांच सेर बेसन मांग कर ला जिससे कुछ समय के लिए गुजरा
हो जायेगा इस प्रकार रानी कि आज्ञा मान कर दासी रानी के बहन के पास गयी तो रानी की
बहन उस समय पूजन कर रही थी क्यों की उस रोज़ बृहस्पतिवार का दिन था जब दासी ने रानी
की बहन को देखा तो उससे बोली हे रानी मुझे तुम्हारी बहन ने भेजा है मेरे लिए पांच सेर बेसन देदो इस प्रकार दासी ने अनेक बार
कहा परन्तु रानी ने कुछ उत्तर नहीं दिया क्यों की वो उस समय बृहस्पतिवार की व्रत
कथा सुन रही थी, इस प्रकार जब दासी को किसी प्रकार का उत्तर नहीं मिला तो वो
बहुत दुखी हुई और क्रोध भी आया और लौट कर अपने गाँव आ रानी के पास आ कर बोली हे
रानी आपकी बहन बहुत ही धनस्त्री है वो छोटे लोगों से बात भी नहीं करती क्यों की
मैंने उनसे कहा तो उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया फिर मै वापस चली आयी रानी बोली हे
दासी इसमें उसका कोई दोष नहीं है जब बुरे दिन आते हैं तो कोई सहारा नहीं देता
अच्छे बुरे का पता विपत्ति में ही लगता है जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा ये सब हमारे
भाग्य का दोष है इधर उस रानी ने देखा की मेरी बहन की दासी आयी थी परन्तु मै उससे
नहीं बोल पायी इससे वो बहुत दुखी होगी ये सोच कर कथा को सुन और विष्णु भगवान का
पूजन समाप्त करके वो रानी अपनी बहन के घर चली गयी और जाकर अपनी बहन से कहने लगी हे
बहन मै बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी तुम्हारी दासी गयी परन्तु जब तक कथा होती है
तब तक न उठते हैं और न बोलते हैं इसलिए मै नहीं बोली अभी कहो
तुम्हारी दासी क्यों आयी थी रानी की बहन ने कहा हे बहन हमारे यहाँ अनाज नहीं था
वैसे तुमसे कोई बात छिपी तो नहीं है इसीलिए मैंने दासी को तुम्हारे पास पांच सेर
बेसन लेने को भेजा था रानी बोली बहन देखो बृहस्पति भगवान सबकी मनोकामना पूर्ण करते
हैं देखो शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो इस प्रकार का वचन जब रानी ने सुना तो
वो घर के अंदर गयी वहां उसे एक घड़ा बेसन का भरा मिल गया तब तो वो रानी और दासी बहुत
ही दुखी हुई और दासी रानी से कहने लगी हे रानी देखो वैसे जब हमको नहीं मिलता तो हम
रोज़ ही व्रत करते हैं अगर इनसे व्रत की विधि और कथा पूछ ली जाये तो उसे हम भी किया
करेंगे तब उस रानी ने अपनी बहन से पूछा की हे बहन मुझे भी बृहस्पतिवार के व्रत के
बारे में बताओ मै भी ये व्रत करुँगी तब रानी की बहन ने बताया की इस व्रत में चना
की दाल, मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा
दीपक जलावें, पीला भोजन करें तथा कथा सुनें इस प्रकार करने से गुरु
भगवान प्रसन्न होते हैं अन्न, पुत्र, धन देते है मनोकामना पूर्ण करते हैं इस प्रकार रानी और दासी
दोनों ने निश्चय किया की बृहस्पति भगवान का पूजन जरूर करेंगे सात रोज बाद जब
बृहस्पतिवार आया तो उन्होंने व्रत रखा, घुड़साल में जाकर चना, गुड़ बीन लायी तथा चने की दाल से केले की जड़ का तथा विष्णु भगवान का पूजन किया
अब भोजन पीला कहा से आए बेचारी बड़ी दुखी हुई परन्तु उन्होंने व्रत किया था इस कारण से गुरु
भगवान प्रसन्न होकर दो थालियों में सुन्दर पीला भोजन लेकर आये और दासी को देकर
बोले हे दासी ये तुम्हारे और रानी के लिए भोजन है तुम दोनों कर लेना दासी भोजन
पाकर बड़ी प्रसन्न हुई और रानी से बोली चलो रानी जी भोजन कर लो रानी को इस विषय में
कुछ पता नहीं था इसलिए वो दासी से बोली तुही भोजन कर क्यों की तू हमारी व्यर्थ में
ही हंसी उड़ाती है दासी बोली एक महात्मा भोजन दे गया है रानी कहने लगी वो भोजन तेरे
ही लिए दे गया है तू ही भोजन कर दासी ने कहा वो महात्मा दो थालियों में हम दोनों
के लिए भेजन दे गया है इसलिए हम और तुम दोनों ही साथ साथ भोजन करेंगी इस प्रकार
रानी और दासी दोनों ने गुरु भगवान को नमस्कार करके भोजन प्रारम्भ किया अब वो
प्रत्येक बृहस्पतिवार को गुरु भगवान का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन करने लगी, बृहस्पति भगवान की कृपा से रानी और दासी के पास धन हो गया तो रानी फिर उसी
प्रकार से आलस्य करने लगी| तब दासी बोली देखो रानी तुम पहले इस प्रकार से आलस्य करती
थी तुम्हे धन रखने में कष्ट होता था इस कारण सभी धन नष्ट हो गया अब गुरु भगवान की
कृपा से फिर से धन मिला है तो फिर तुम्हे आलस्य होता है बड़ी मुसीबतों के बाद हमने
ये धन पाया है इसलिए हमें दान और पुण्य करना चाहिए तथा भूखे मनुष्यों को भोजन
करवाना चाहिए,
प्याऊ लगवाने चाहिए, ब्राह्मणो को दान देना चाहिए, कुए, तालाब, बावड़ी, बाग़, बगीचे आदि का निर्माण करवाना चाहिए मंदिर और पाठशालाएं बनवा कर दान करना चाहिए कुंवारी कन्याओं का विवाह करवाना चाहिए और धन को शुभ
कार्यों में ही खर्च करना चाहिए जिससे तुम्हारे कुल का यश बढे तथा स्वर्ग प्राप्त
हो और पितृ प्रसन्न होएं तब रानी ने इसी प्रकार के कर्म करने का निश्चय किया और
कर्म करना प्रारम्भ किया तो काफी यश फैलने लगा एक दिन रानी और दासी विचार करने लगी
न जाने राजा किस दशा में होंगे उनकी कोई खोज खबर नहीं है गुरु भगवान से उन्होंने
प्रार्थना की और भगवान ने रात्रि में राजा को स्वप्न में कहा हे राजा उठ तेरी रानी
तुझको याद करती है अपने देश को चला जा राजा प्रातः काल उठा और विचार करने लगा स्त्री
जाती खाने और पहनने की ही साथी होती है पर भगवान की आज्ञा मान कर वो अपने नगर के
लिए चलने को तैयार हुआ लेकिन जब इससे पूर्व राजा परदेस चला गया था तो
परदेस में दुखी रहने लगा प्रतिदिन जंगल में से लकड़ी बीन कर लता और उन्हें बेच कर
अपने जीवन को बड़ी कठिनता से व्यतीत करता था एक दिन राजा दुखी हो अपनी पुरानी बातों
को याद करके रोने लगा तब उस जंगल में बृहस्पति देव एक साधु के वेश में रूपधारण
करके आए और राजा के पास आकर बोले हे लकड़हारे तुम इस सुनसान जंगल में किस चिंता में बैठे हो
मुझको बताओ, ये सुन राजा के नेत्रों में जल भर आया और साधु को वंदना कर
बोला हे प्रभु आप सब कुछ जानने वाले हो इतना कह कर साधु को उसने अपनी संपूर्ण
कहानी सुना दी, महात्मा दयालु होते हैं वो राजा से बोले हे राजा तुम्हारी
स्त्री ने बृहस्पति देव का अपराध किया था जिस कारण तुम्हारी ये दशा हुई है अब तुम किसी प्रकार
की चिंता मत करो भगवन तुम्हे पहले से अधिक धन देगा देखो तुम्हारी स्त्री ने बृहस्पतिवार का व्रत प्रारम्भ कर
दिया है और तुम भी मेरा कहा मान कर बृहस्पतिवार के दिन चना, गुड़ और जल को लोटे में डाल कर केला का पूजन करो फिर कथा कहो और सुनो भगवान
तुम्हारी सब मनोकामना पूर्ण करेंगे साधु को प्रसन्न देख कर राजा बोला हे प्रभु
मुझे लकड़ी बेच कर इतना पैसा नहीं मिलता की मै भोजन करने के
उपरांत कुछ बचा सकूँ मैंने रात्रि में अपनी रानी को व्याकुल देखा है मेरे पास कुछ
भी नहीं जिससे की मै उसकी खबर मंगा सकूँ मै ये व्रत तथा कथा कैसे करू व
कहुँ मुझे कुछ भी मालूम नहीं है साधु ने कहा राजा तुम किसी बात की चिंता मत करो
बृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियां लेकर शहर जाओ तुमको रोज से दोगुना
धन प्राप्त होगा जिससे तुम भली भाती भोजन कर सकोगे तथा बृहस्पतिदेव के पूजा का
सामान भी आ जायेगा इस व्रत को करने तथा कथा कहने की विधि के लिए मै तुम्हे एक
दूसरी कथा सुनाता हूँ ध्यान से सुनना प्राचीन कल में एक ब्राह्मण था वो
बहुत ही निर्धन था उसके कोई भी संतान नहीं थी उसकी स्त्री बहुत ही मलिनता के साथ
रहती थी वो न तो स्नान करती और न ही किसी देवता का पूजन करती प्रातःकाल उठते ही
सर्वप्रथम भोजन करती बाद में कोई अन्य कार्य करती थी इससे ब्राह्मण देवता बड़े दुखी
थे बेचारे बहुत कुछ कहते थे किन्तु उसका कोई परिणाम नहीं निकला, भगवान की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री को कन्या रूपी
रत्न पैदा हुई और वो कन्या अपने पिता के घर में बड़ी होने लगी वो
बालिका प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान का जाप करने लगी हर बृहस्पतिवार का व्रत
करने लगी अपने पूजा पाठ को समाप्त करके पाठशाला जाती तो अपने मुठ्ठी में जौ भर के
ले जाती और पाठशाला जाने के मार्ग में डालती जाती वही जौ स्वर्ण के हो जाते तो
लौटते समय उनको बीन कर घर ले आती थी एक दिन वो बालिका सुप में जौ को फटक कर साफ़ कर
रही थी तभी उसकी माँ ने देखा और कहा सोने के जौ को फटकने के लिए सोने का सुप होना
चाहिए, दूसरे दिन गुरुवार था इस कन्या ने
व्रत रखा और बृहस्पतिदेव से प्रार्थना
करके कहा प्रभु मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की है मेरे लिए सोने का सुप दे दो बृहस्पतिदेव ने
उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली फिर रोज़ाना की तरह वो कन्या जौ फैलाती हुई जाने लगी
और जब लौट के जौ बीन रही थी तो बृहस्पतिदेव की कृपा से उसे सोने का सुप मिला उसे
वो घर ले आई और उससे वो जौ साफ़ करने लगी परन्तु उसकी माँ का वही ढंग रहा| एक दिन की बात है
की वो कन्या सोने के सुप में जौ साफ़ कर रही थी उस समय उस शहर का राजपुत्र वहां से होकर निकला
इस कन्या के मुख और कार्य को देख कर मोहित हो
गया तथा अपने घर आकर भोजन और जल त्याग कर उदास होकर लेट गया राजा को जब इस बात का
पता लगा तो अपने प्रधान मंत्रियों के साथ अपने पुत्र के पास गया और बोला बेटा
तुम्हे किस बात का कष्ट है किसी ने अपमान किया है? अथवा कोई और कारण है? सो कहो मै वही कार्य करूँगा जिससे तुम्हे
प्रसन्नता हो राजकुमार ने अपने पिता की बातें सुनी तो वो बोला मुझे आपकी कृपा से किसी भी बात का दुःख नहीं है न ही किसी
ने मेरा अपमान किया है परन्तु पिताजी मै उस लड़की
के साथ विवाह करना चाहता हूँ जो सोने के सुप में जौ को साफ़ कर रही थी ये सुनकर
राजा आश्चर्य में पड़ा और बोला बेटा इस तरह की कन्या का पता तुम्ही लगाओ मै उस
कन्या के साथ तुम्हारा विवाह अवश्य ही करवा दूंगा राजकुमार ने उस लड़की के घर का
पता बतलाया मंत्री उस लड़की के घर गए और ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के
साथ संपन्न हो गया, कन्या के घर से जाते ही पहले की भांति उस
ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी का निवास हो गया अब भोजन के लिए अन्न भी बड़ी मुश्किल से मिलता था एक दिन
दुखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गए बेटी ने पिता की दुखी अवस्था को
देखा और अपनी माँ का समाचार पूछा तब ब्राह्मण ने सभी हाल कहा कन्या ने बहुत सा धन
देकर अपने पिता को विदा कर दिया इस प्रकार ब्राह्मण का कुछ समय सुख पूर्वक व्यतीत
हुआ कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के यहाँ गया और सभी
हाल कहा तो लड़की बोली पिताजी आप माताजी को यहाँ लाओ मै उसे विधि बता दूंगी
जिससे गरीबी दूर हो जाएगी वो ब्राह्मण देवता
अपनी स्त्री को साथ लेकर पहुंचे तो पुत्री अपनी माँ को समझाने लगी माँ तुम प्रातःकाल उठ कर सर्वप्रथम स्नानादि करके
विष्णु भगवान का पूजन करो सब दरिद्रता दूर हो जाएगी परन्तु उसकी माँ ने एक भी बात
नहीं मानी और प्रातःकाल उठ कर फिर से अपने पुत्री और बच्चों का जूठन खाने लगी, एक दिन उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया और एक रात कोठरी से सारा सामान निकाल दिया और अपनी माँ को उसमे बंद कर दिया प्रातःकाल उसमे से निकला तथा स्नानादि कराके पूजा पाठ
करवाया तो उसकी माँ की बुद्धि ठीक हो गयी और
प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी इस व्रत के प्रभाव से उसकी माँ भी बहुत ही
धनवान हो गयी और बृहस्पतिजी के प्रभाव से स्वर्ग को प्राप्त हुई तथा ब्राह्मण
देवता भी इस लोक के सुख भोग कर स्वर्ग को प्राप्त हुए इस तरह कहानी कह कर साधु
देवता राजा के यहाँ से लोप हो गए धीरे धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वही
बृहस्पतिवार का दिन आया राजा जंगल से लकड़ी काट कर किसी शहर में बेचने गया उसे उस
दिन और दिनों से अधिक धन मिला राजा ने चना गुड़ आदि लाकर बृहस्पतिवार का व्रत किया उस दिन से उसके सभी क्लेश
दूर हो गए परन्तु जब दुबारा गुरुवार का दिन आया तो बृहस्पतिवार का व्रत करना वो
भूल गया इस कारण बृहस्पति भगवान नाराज़ हो गए, उस दिन उस नगर के राजा ने
विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा शहर में ये घोसणा करा दी की कोई भी मनुष्य अपने घर
भोजन न बनाये तथा आग भी ना जलाये समस्त लोग मेरे यहाँ भोजन करने आएं इस आज्ञा को
जो भी नहीं मानेगा उसके लिए फांसी की सजा दी जाएगी इस तरह की घोसणा संपूर्ण नगर में करवा दी गयी राजा के आज्ञा
अनुसार शहर के सभी लोग भोजन करने गए लेकिन ये लकड़हारा कुछ देर से पहुंचा इसलिए
राजा अपने साथ घर लेकर गए और ले जा कर भोजन करा रहे थे तो रानी की दृष्टि उस
खूँटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था वो वहां पर नहीं दिखाई दिया रानी ने
निश्चय किया की मेरा हार जरूर इसी मनुष्य ने चुराया है उसी समय सिपाहियों को बुलवाकर
उसे जेल खाने में डलवा दिया जब राजा जेल खाने में गया तो बहुत दुखी होकर
विचार करने लगा की न जाने कौन से पूर्व जन्म के कर्म से मुझे ये दुःख प्राप्त हुआ है और उसी साधु
को याद करने लगा जो की उसे जंगल में मिला था उसी समय तत्काल बृहस्पति देव साधु के
रूप में प्रकट हो गए और उसकी दशा देख कर कहने लगे अरे मुर्ख तूने बृहस्पतिदेव की
व्रत एवं कथा नहीं की इसी कारण तुम्हे दुःख प्राप्त हुआ है अब चिंता मत कर
बृहस्पतिवार के दिन जेलखाने के दरवाज़े पर चार पैसे पड़े मिलेंगे उनसे तू
बृहस्पतिदेव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे, बृहस्पतिवार के रोज़ उसे चार पैसे पड़े मिले उन पैसों से बृहस्पतिदेव के लिए पूजा तथा व्रत के
सामान की व्यवस्था कर उसने विधि पूर्वक पूजा तथा व्रत संपन्न किया उसी रात
बृहस्पतिदेव ने उस नगर के राजा के स्वप्न में आकर कहा हे राजन तुमने जिस आदमी को
जेलखाने में बंद कर रखा है वह निर्दोष है, वो राजा है उसे छोड़ देना
रानी का हार उसी खूँटी पर लटका हुआ है अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मै तेरे राज्य को
नष्ट कर दूंगा इस तरह रात्रि के स्वप्न को देख कर राजा प्रातःकाल उठा और खूँटी पर
हार लटका हुआ देख कर लकड़हारे को बुला कर क्षमा मांगी तथा राजा को योग्य व सुन्दर वस्त्र और आभुषण देकर
विदा किया साधु के आदेशानुसार राजा अपने नगर को चल दिया राजा जब नगर के निकट
पहुंचा तो उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ नगर में पहले से अधिक बाग़, तालाब और कुँए तथा बहुत से धर्मशाला और मंदिर आदि बने हुए थे राजा ने पूछा की
ये किसका बाग़ और धर्मशाला है? तब नगर के सब लोग कहने लगे
ये सब रानी और उसकी दासी के हैं तो राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया जब रानी
ने ये खबर सुनी की राजा आ रहे हैं तो उसने दासी से कहा हे दासी देख राजा हमें कितनी बुरी हालत
में छोड़ गए थे वो हमारी ऐसी हालत देख कर कही लौट न जाएं इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो
जा आज्ञा अनुसार दासी दरवाज़े पर खड़ी हो गयी और जब राजा आये तो उन्हें अपने साथ ले
आयी तब राजा ने क्रोध करके अपनी तलवार निकाली और पूछने लगे ये बताओ की ये धन
तुम्हे कैसे प्राप्त हुआ है? तब उन्होंने कहा हमें ये सब धन बृहस्पतिदेव के
व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है तब राजा ने निश्चय किया की सात रोज़ बाद तो सभी बृहस्पतिदेव की पूजा करते हैं
परन्तु मै रोज़ाना दिन में तीन बार कथा कहा
करूँगा तथा रोज़ व्रत किया करूँगा अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी
रहती थी तथा दिन में तीन बार कथा करता एक रोज़ राजा ने विचार किया की चलो अपनी बहन
के यहाँ हो आएं इस तरह निश्चय करके राजा अपने घोड़े पे सवार हो अपनी बहन के यहाँ चला गया मार्ग में उसने देखा की कुछ
आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं उन्हें रोक कर राजा कहने लगा अरे भाइयों मेरी
बृहस्पतिदेव की कथा सुन लो वे बोले लो हमारा तो आदमी मर गया है और इसको अपनी कथा की पड़ी है परन्तु कुछ लोग
बोले अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगे राजा ने दाल निकाली और जब कथा आधी हुई
थी की मुर्दा हिलने लग गया और जब कथा समाप्त हो गयी तो राम राम कह कर वह मनुष्य
खड़ा हो गया| आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलता हुआ मिला राजा
ने उसे देखा और उससे बोला अरे भैया तुम मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन लो किसान बोला
जब तक मै तेरी कथा सुनुँगा तब तक मै चार हरैया जोत लूंगा जा अपनी कथा किसी और को
सुनाना इस तरह राजा आगे चलने लगा राजा के हटते ही हुआ क्या की बैल पछाड़ खा कर गिर गए तथा किसान के पेट में बहुत
ज़ोर से दर्द होने लगा उसी समय उसकी माँ किसान के लिए खाने को लेकर रोटी लायी उसने
जब ये देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पूछा और बेटे ने सभी हाल कह सुनाया तो बुढ़िया
दौड़ी दौड़ी उस घुड़सवार के पास गयी और उससे बोली मै तेरी कथा सुनूंगी तू अपनी कथा
मेरे खेत पर चल कर ही कहना राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही जिसके सुनते ही
वो बैल खड़े हुए तथा किसान के पेट का दर्द भी बंद हो गया इन सबके पश्चात् राजा अपनी
बहन के घर पहुंचा बहन ने भाई की खूब मेहमानी की दूसरे रोज़ राजा प्रातःकाल जगा तो
वो देखने लगा सब लोग भोजन कर रहे हैं राजा ने अपनी बहन से कहा की ऐसा कोई मनुष्य
है जिसने अभी तक भोजन नहीं किया हो मेरी बृहस्पृतिवार की कथा कहनी है बहन बोली हे
भैया ये देश ऐसा ही है पहले यहाँ लोग भोजन करते हैं बाद में अन्य काम करते हैं अगर
कोई पड़ोस में हो तो देख आऊं वो ऐसा कह कर देखने चली गयी परन्तु उसे कोई भी ऐसा
व्यक्ति नहीं मिला जिसने भोजन न किया हो उसके पश्चात् वह एक कुम्हार के घर गयी जिसका लड़का बीमार था उसे मालूम हुआ की
उसके यहाँ तीन रोज़ से किसी ने भी भोजन नहीं किया है रानी ने अपने भाई की कथा सुनने
के लिए कुम्हार से कहा तो वो तैयार हो गया राजा ने
जाकर बृहस्पतिवार की कथा कही जिसको सुन कर उसका लड़का ठीक हो गया अब तो राजा की
प्रशंसा होने लगी| एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा की हे बहन हम
अपने घर को जायेंगे तुम भी तैयार हो जाओ राजा की बहन ने अपनी सास से कहा सास बोली
हां चली जा परन्तु अपने लड़को को मत ले जाना क्यों की तेरे भाई के यहाँ कोई औलाद नहीं होती है| बहन ने अपने भाई से कहा भैया मै तो चलूंगी लेकिन कोई बालक नहीं जायेगा इस पर राजा बोला जब कोई
बालक नहीं जायेगा तब तुम क्या करोगी बड़े दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया, राजा ने अपनी रानी
से कहा हम निर्वंशी राजा हैं हमारा मुँह देखने का धर्म नहीं है और कुछ भोजन आदि भी नहीं किया तब
रानी बोली, प्रभु बृहस्पतिदेव ने हमें सब कुछ दिया है हमें औलाद भी
अवश्य देंगे उसी रात को बृहस्पति देव ने राजा को स्वप्न में कहा हे
राजा उठ सभी सोच को त्याग दे तेरी रानी गर्भ से
है राजा को ये बात सुन कर बड़ी प्रसन्नता हुई तथा नववे महीने में उनके यहाँ एक सुन्दर सा पुत्र
पैदा हुआ तब राजा बोला रानी स्त्री बिना भोजन के रह सकती है बिना कहे नहीं रह सकती
तो जब मेरी बहन आये तो तुम उससे कुछ मत कहना रानी ने सुनकर हाँ कर दिया| जब राजा की बहन ने ये शुभ समाचार सुना तो वो बहुत खुश हो गयी तथा बधाई लेकर
अपने भाई के यहाँ आई तभी रानी ने कहा घोड़ा चढ़ कर तो नहीं आई गधा चढ़ी आई राजा की
बहन बोली भाई अगर मै इस प्रकार न कहती तो तुम्हे औलाद कैसे मिलती बृहस्पतिदेव
ऐसे ही हैं जैसी जिसकी मन में कामनाएं हैं सभी को पूर्ण करते हैं जो सद्धभावना
पूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पड़ता है अथवा सुनता है और दुसरो को
सुनाता है बृहस्पतिदेव उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं भगवान बृहस्पतिदेव उसकी
सदैव रक्षा करते हैं संसार में सद्भावना से भगवान जी का पूजन व व्रत सच्चे ह्रदय
से करते हैं तो वो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं जैसी सच्ची भावना से रानी और
राजा ने बृहस्पतिदेव जी की कथा का
गुणगान किया तो उनकी सभी इच्छाएं बृहस्पतिदेव जी ने पूर्ण की उसी प्रकार सच्चे मन
से कथा सुनकर प्रसाद लेकर जाना चाहिए ह्रदय से बृहस्पतिदेव जी का मनन करते हुए
जयकारा बोलना चाहिए|
"बृहस्पतिदेव की जय
हो"
इति बृहस्पतिवार व्रत कथा
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